जीएसटी, जिसने 2017 में भारत को 'एक देश, एक बाजार' में बदला

जीएसटी, जिसने 2017 में भारत को ‘एक देश, एक बाजार’ में बदला

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जीएसटी के लागू होने पर 29 राज्यों में से करीब 24 राज्यों ने अपनी सीमाओं पर से कर चौकियों को हटा दिया है. इससे माल से लदे ट्रकों की आवाजाही का समय बचा है.

माल एवं सेवा कर (जीएसटी) यकीनन देश में 2017 के सबसे चर्चित मुद्दों में से एक रहा. करीब छह महीने पहले जब दर्जनों करों और शुल्कों की जगह केवल एक कर जीएसटी लागू किया गया तो देश में हंगामा हो गया. लेकिन अब जैसे-जैसे जीएसटी की प्रणाली में स्थिरता आ रही है, इसका दायरा बढ़ाने की संभावनाएं बढ़ गई हैं. अगले कुछ महीने में प्राकृतिक गैस को नए कर व्यवस्था के तहत लाया जा सकता है. एक जुलाई को जब जीएसटी लागू किया गया तो इसे तकनीकी रूप से कठिन और महंगा बताया गया. हालांकि, सरकार ने नई व्यवस्था में कई बदलाव किए, जिसमें कर फाइल करने की प्रक्रिया को सरल बनाना और 200 से ज्यादा वस्तुओं की दरें घटाना शामिल है.

जीएसटी ने 30 जून की आधी रात में भारत को ‘एक देश, एक बाजार’ में बदल दिया. उस समय रीयल एस्टेट के साथ-साथ कच्चा तेल, विमान ईंधन या एटीएफ, प्राकृतिक गैस, डीजल तथा पेट्रोल को इसके दायर से बाहर रखा गया. इसका अर्थ यह था कि इन उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क और वैट जैसे कर लागू रहेंगे. 2018 में इसमें बदलाव की उम्मीद की जा रही है. कम से कम प्राकृतिक गैस के मामले में तो ऐसा ही लगता है.

राजस्व विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि केंद्र और राज्य इसे शामिल करने पर राजस्व बढ़ने को लेकरआश्वस्त हैं. इस लिहाज से प्राकृतिक गैस वो अगली बड़ी वस्तु होगी, जिसे जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि पांच पेट्रोलियम उत्पादों में प्राकृतिक गैस जीएसटी के तहत लाने के लिए सरल उम्मीदवार है. अगर प्राकृतिक गैस पर कोयले के बराबर 5 प्रतिशत कर लगाया जाता है तो राज्यों में सीएनजी के दाम घटाने में मदद मिलेगी.

केंद्र सरकार जनवरी में आयोजित अगली जीएसटी परिषद की बैठक में प्राकृतिक गैस को जीएसटी के दायरे में लाने की कोशिश कर सकता है. लेकिन अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के लिए ऐसा करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि राज्य और केंद्र दोनों को ही इनसे काफी राजस्व मिलता है.

निर्यातकों के लिए कर रिफंड के कारण जीएसटी किसी बुरे सपने से कम नहीं है, क्योंकि रिफंड प्रक्रिया में देरी के चलते उनके सामने पूंजी की समस्या खड़ी हो गई. लघु, असंगठित कारोबार जैसे वस्त्र उद्योग और आभूषण क्षेत्र भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. जब अधिकारी से पूछा गया कि रीयल एस्सेट क्षेत्र को जीएसटी के दायरे में लाया जो सकता है तो उन्होंने कहा कि यह “मुश्किल” है. उन्होंने का रीयल एस्टेट सेक्टर को इसके दायरे में लाने का फायदा तभी उपभोक्ताओं को मिलेगा जब स्टाम्प शुल्क, पंजीकरण शुल्क और जीएसटी तीनों को लेकर चर्चा हो. अगर हम स्टाम्प शुल्क छोड़कर रीयल एस्सेट को जीएसटी में लाते हैं तो उपभोक्ताओं को दो तरह के करों का सामना करना पड़ेगा.

राज्यों को नयी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लिए राजी करने के लिए सरकार ने चार दरों वाली जीएसटी की व्यवस्था की जिसमें 5, 12, 18 और अधिकतम 28 प्रतिशत की दर रखी गयी. सिंगापुर, ब्रिटेन और मलेशिया जैसे देशों में जीएसटी की केवल एक दर है. पर छह महीने में ही ऐसी चर्चाए होने लगी है कि कुछ बेइमान व्यापारी और ट्रांसपोर्टर कर चोरी के लिए केवल नकदी में व्यापार कर रहे हैं. तमिलनाडु और महराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने कुछ वस्तुओं पर जीएसटी की दर बढ़ाने का अपना अधिकार इस्तेमाल किया है. अगर ऐसा होता रहा तो पूरे देश में एक जैसी कर व्यवस्था का उद्येश्या विफल हो जाएगा.

शुरू में जीएसटी नेटवर्क पर रिटर्न दाखिल करने में कारोबारियों को भारी दिक्कतें आयीं. इसको देखते हुए उन्हें फाइलिंग के लिए अधिक समय दिया गया. अब प्रणाली जम गयी लगती है पर सरकार ने डेढ़ लाख करोड़ रुपये सालाना तक के कारोबार वाले कारोबारियों को विवरण दाखिल करने में कुछ सहूलियत दी है. सरकार ने निर्यातकों को कर रिफंड में शीघ्रता लाने के लिए भी कदम उठाए हैं.

जीएसटी के लागू होने पर 29 राज्यों में से करीब 24 राज्यों ने अपनी सीमाओं पर से कर चौकियों को हटा दिया है. इससे माल से लदे ट्रकों की आवाजाही का समय बचा है. पहले तीन महीनों में जीएसटी से वसूल राजस्व 93,000 करोड़ रुपये से 83,346 करोड़ रुपये के बीच रहा है. कर में गिरावट को देखते हुए सरकार ने माल की खेप की आवाजाही के लिए इलेक्ट्रानिक तरीके से मार्ग पर्ची (ई-वे बिल) जल्द लागू करने का निर्णय किया है ताकि माल की आवक और निकासी के बिलों का कंप्यूटरीकृत मिलान किया जा सके. अगस्त से नवंबर के बीच जीएसटीएन नेटवर्क पर तीन करोड़ से अधिक जीएसटी रिटर्न दाखिल किए गए हैं.

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