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बैंकों का एनपीए सितंबर अंत तक 7.34 लाख करोड़ रुपए पर पहुंचा

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30 सितंबर 2017 तक सार्वजनिक बैंकों का समग्र एनपीए 7,33,974 करोड़ रुपये तथा निजी बैंकों का 1,02,808 करोड़ रुपये रहा.

सार्वजनिक बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के अंत तक 7.34 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गयी. इसका अधिकांश हिस्सा कॉरपोरेट डिफाल्टरों के कारण रहा. रिजर्व बैंक के आंकड़ों में यह जानकारी दी गयी. हालांकि, निजी बैंकों का एनपीए इस दौरान अपेक्षाकृत काफी कम 1.03 लाख करोड़ रुपये रहा. वित्त मंत्रालय ने इन आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, ‘‘30 सितंबर 2017 तक सार्वजनिक बैंकों का समग्र एनपीए 7,33,974 करोड़ रुपये तथा निजी बैंकों का 1,02,808 करोड़ रुपये रहा.’’

मंत्रालय ने कहा कि इसमें करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारा शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे कर्ज का है. भारतीय स्टेट बैंक की एनपीए सर्वाधिक 1.86 लाख करोड़ रुपये रही. इसके बाद पंजाब नेशनल बैंक ( 57,630 करोड़ रुपये), बैंक ऑफ इंडिया ( 49,307 करोड़ रुपये), बैंक ऑफ बड़ौदा (46,307 करोड़ रुपये), केनरा बैंक (39,164 करोड़ रुपये )और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का (38,286 करोड़ रुपये) का नंबर रहा. निजी बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक 44,237 करोड़ रुपये के एनपीए के साथ शीर्ष पर रहा है. इसके बाद एक्सिस बैंक 22,136 करोड़ रुपये, एचडीएफसी बैंक 7,644 करोड़ रुपये और जम्मू एंड कश्मीर बैंक का एनपीए 5,983 करोड़ रुपये रहा.

एनपीए पर लगाम के लिए तत्काल उठायें आवश्यक कदम: संसदीय समिति
संसद की याचिका समिति ने बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) यानी वसूल नहीं हो रहे रिणों के बढ़ते स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए सरकार से कहा है कि वह बैंकिंग तंत्र में संकटग्रस्त परिसम्पत्तियों का बोझ कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाये तथा निगरानी व्यवस्था और मजबूत बनाए. संसद में प्रस्तुत अपनी एक ताजा रपट में समिति ने कहा है उसे यह काफी बेबसी की बात है कि बैंकिंग प्रणाली में निगरानी व्यवस्था होने के बाद भी एनपीए से संबंधित फर्जीवाड़े की घटनाएं होती जा रही हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस संबंध में समिति का मानना है कि सरकार या रिजर्व बैंक के परामर्श या दिशानिर्देश जारी कर देने मात्र का एनपीए पर शायद ही कोई असर पड़ा है और रिजर्व बैंक एक नियामक के तौर पर अपने ही दिशानिर्देशों का लागू करा पाने में अब तक सफल नहीं हुआ है. यह चिंता की बात है.’ समिति ने इस बाबत सुझाव दिया कि सरकार रिजर्व बैंक से कहे कि वह बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में नियमों और निर्देशों के अनुपालन की नियमित निगरानी करे. उसने मौजूदा सतर्कता व्यवस्था की समीक्षा करने तथा जरूरत होने पर इसे और सख्त बनाने के लिए संशोधन का भी सुझाव दिया.

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