कर्ज में फंसी संपत्ति की नीलामी में बोली नहीं लगा सकेंगे उसके प्रमोटर

कर्ज में फंसी संपत्ति की नीलामी में बोली नहीं लगा सकेंगे उसके प्रमोटर

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कानून में किया गया ताजा संशोधन उन मामलों में भी लागू होगा जहां शोधन प्रक्रिया समाधान को अभी मंजूरी मिलना बाकी है. ऋण शोधन कानून में किये गये इस संशोधन को बाद में संसद की मंजूरी की आवश्यकता है.

दिवाला कानून के तहत ऋण शोधन प्रक्रिया में आई कंपनियों के प्रवर्तकों को झटका लगा है. वह ऐसी संपत्तियों को हासिल करने के लिये बोली प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे. सरकार ने कानून में संशोधन करते हुये अध्यादेश जारी किया है जिसमें जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वाले तथा जिनके खातों को फंसे कर्ज (एनपीए) की श्रेणी में डाला गया है, उन्हें ऐसी संपत्तियों की नीलामी में बोली लगाने से रोकने का प्रावधान किया गया है. कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अध्यादेश लाने का मकसद गलत इरादा रखने वाले लोगों को ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों का उल्लंघन करने से रोकने के लिये एहतियाती उपाय करना है.

कानून में किया गया ताजा संशोधन उन मामलों में भी लागू होगा जहां शोधन प्रक्रिया समाधान को अभी मंजूरी मिलना बाकी है. ऋण शोधन कानून में किये गये इस संशोधन को बाद में संसद की मंजूरी की आवश्यकता है. संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से शुरू होने की संभावना है. इन बदलावों का मतलब यह है कि बैंकों के कर्ज की वसूली के लिये ऋण शोधन कार्रवाई के तहत आई संपत्तियों की नीलामी में उनके प्रवर्तकों को बोली लगाने की अनुमति नहीं होगी.

रिजर्व बैंक ने इस कानून के तहत पहले चरण में 5,000 करोड़ से अधिक के बकाया वाली 12 कंपनियों के मामले को समाधान के लिये भेजा. इन कंपनियों में भूषण स्टील, एस्सार स्टील, लैंको इंफ्राटेक, मोनेट इस्पात और इलेक्ट्रोस्टील शामिल हैं. कई मामलों में देखा गया है कि शोधन प्रक्रिया के तहत बोली लगाने वालों में उन कंपनियों के मूल प्रवर्तक भी शामिल हैं. ऐसी आशंका थी कि कर्ज नहीं लौटाने वाले प्रवर्तक ऋण शोधन कार्रवाई के अंतर्गत आने वाली कंपनी को कर्ज वसूली के लिये नीलामी में फिर से अपने नियंत्रण में ले सकती हैं. इसे देखते हुए बुधवार को सरकार ने कानून में संशोधन को लेकर अध्यादेश लाने का फैसला किया.

मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. इसमें कहा गया है, ‘‘संशोधनों का उद्देश्य उन लोगों को इसके दायरे से बाहर रखना है जिन्होंने जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाया तथा फंसे कर्जों (एनपीए) से संबंधित हैं और जिन्हें नियमों का अनुपालन न करने की आदत है. इसीलिए उन्हें किसी कंपनी के दिवाला संबंधी विवाद के सफल समाधान में बाधक माना गया है.’’

अध्यादेश के तहत वे सभी भी बोली नहीं लगा सकेंगे जिनके खातों को एक साल या उससे अधिक समय से गैर-निष्पादित परिसपंत्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया और वे समाधान योजना लाये जाने से पहले ब्याज समेत बकाया राशि का निपटान नहीं कर पाये. इसके अंतर्गत आईबीसी के तहत जिन कंपनियों के खिलाफ ऋण शोधन या परिसमापन प्रक्रिया चल रही है, उससे संबद्ध कंपनियां, प्रवर्तक, होल्डिंग कंपनियां, अनुषंगी इकाइंया तथा संबद्ध कंपनियों या संबंधित पक्ष फंसी संपत्ति के लिये बोली लगाने के लिये पात्र नहीं होंगे.

संशोधित संहिता यह भी कहती है कि ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) को समाधान योजना की मंजूरी से पहले उसकी व्यवाहार्यता सुनिश्चित करनी चाहिए. विज्ञप्ति के अनुसार सीओसी को वैसी समाधान योजना को खारिज करना चाहिए जिसे अध्यादेश से पहले जमा किया गया और उसे अभी मंजूरी नहीं मिली है. इसके अलावा संहिता को लागू करने वाला ऋण शोधन एवं दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) को अतिरिक्त शक्तियां दी गयी हैं. अध्यादेश के तहत दिवाला संहिता में छह धाराओं में संशोधन किया गया है. इसके अलावा दो नई धाराएं जोड़ी गयी हैं.

संहिता पिछले साल दिसंबर में परिचालन में आ गई. इस कानून के तहत कर्ज में फंसी संपत्तियों के लिये बाजार मूल्य आधारित तथा समयबद्ध ऋण शोधन के समाधान की प्रक्रिया उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है. तीन सौ से अधिक मामलों को इस कानून के तहत सुनवाई के लिये राष्ट्रीय कंपनी विधि प्राधिकरण (एनसीएलटी) से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है. अध्यादेश पर अपनी प्रतिक्रिया में एस्सार स्टील के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी ने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की है.

भूषण स्टील लि. तथा भूषण स्टील एंड पावर के मुख्य वित्त अधिकारी नितिन जौहरी ने भी कहा, ‘‘हमने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की है … अगर मंजूरी मिली हम संपत्ति के लिये बोली लगाएंगे.’’ इस बारे में लैंको इंफ्राटेक के एक अधिकारी ने कहा कि कंपनी ने जानबूझकर कर्ज लौटाने में चूक नहीं की लेकिन एनपीए जरूर 8,800 करोड़ रुपये है.

यह पूछे जाने पर कि क्या वे नीलामी प्रक्रिया में बोली लगाएंगे, अधिकारी ने कहा कि मौजूदा नियमों के तहत अंतिम चयन में प्रवर्तकों के प्रस्ताव को संभवत: जगह नहीं मिल सकती. मोनेट इस्पात और इलेक्ट्रोस्टील के अधिकारियों से फिलहाल संपर्क नहीं हो सका है. जेएसडब्ल्यू स्टील के चेयरममैन सज्जन जिंदल ने कहा कि सरकार के आईबीसी प्रक्रिया को दुरूस्त करने के कदम से स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा का रास्ता सुगम होगा. उन्होंने टि्वटर पर लिखा, ‘‘यह देखकर खुशी है कि सरकार का इरादा आईबीसी प्रक्रिया को दुरूस्त करना तथा उसमें भरोसा एवं पारदर्शिता लाना है.’’

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