कर्मचारियों को बोनस में कार देता है यह बिजनेसमैन, बेटे ने की 5000 की नौकरी

कर्मचारियों को बोनस में कार देता है यह बिजनेसमैन, बेटे ने की 5000 की नौकरी

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कर्मचारियों को कार और फ्लैट देने वाले गुजरात के हीरा व्यवसायी के बारे में तो आपको याद ही होगा. पिछले दिनों गुजरात के हीरा व्यवसायी का नाम उस समय सुर्खियों में आया था जब उन्होंने अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को दिवाली बोनस के रूप में गाड़ी और फ्लैट दिए थे.

कर्मचारियों को कार और फ्लैट देने वाले गुजरात के हीरा व्यवसायी के बारे में तो आपको याद ही होगा. पिछले दिनों गुजरात के हीरा व्यवसायी का नाम उस समय सुर्खियों में आया था जब उन्होंने अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को दिवाली बोनस के रूप में गाड़ी और फ्लैट दिए थे. हरे कृष्णा डायमंड एक्सपोर्ट के मालिक घनश्याम ढोलकिया ने इस बार दिवाली पर सुरक्षा का संदेश देते हुए अपने कर्मचारियों को ऐसा गिफ्ट दिया था कि उनके इस कदम से सभी हैरान थे. दरअसल इस बार उन्होंने हेलमेट गिफ्ट किया. इसके माध्यम से उन्होंने जिंदगी बचाने का संदेश दिया.

लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि करोड़ों का कारोबार करने वाले घनश्याम ढोलकिया के बेटे ने जिंदगी की शुरुआत में कितने रुपए की नौकरी की होगी. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक ढोलकिया के बेटे ने 5000 रुपए की नौकरी की थी. दरअसल 6000 करोड़ रुपए का कारोबार करने वाले घनश्याम ढोलकिया ने अपने हितार्थ ढोलकिया को जिंदगी का मतलब समझाने और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए घर से बाहर भेज दिया था.

साथ ही ढोलकिया ने बेटे को यह हिदायत भी दी थी कि वह किसी को उनकी पहचान न बताएं, जिससे की उनके बेटे को उनके नाम का फायदा मिल सके. एक वेबसाइट में प्रकाशित खबर के मुताबिक शुरुआत में बेटे हितार्थ को घर से दूर जाकर परेशानियों का सामना करना पड़ा. हितार्थ ने अपने संघर्ष भरे दिनों को याद करते हुए बताया कि शुरुआत में घर से दूर जाकर परेशानियों का सामना करना पड़ा था.

उन्होंने बताया कि पहले पांच दिन तो मैं बहुत परेशान हो गया. ऐसा लग रहा था कि मैं सब कुछ छोड़कर यहां से चला जाऊं लेकिन फिर मुझे अपने पिता की बात याद आई. आपको बता दें कि घनश्याम ढोलकिया ने अपने बेटे को तीन शर्तों के साथ घर से बाहर भेजा था. इसमें से पहली शर्त थी कि वह उनका नाम लेकर किसी को प्रभावित नहीं करेगा. दूसरी शर्त यह थी कि वह एक हफ्ते से ज्यादा रुककर एक जगह काम नहीं करेगा. तीसरी शर्त थी कि घर से मिले पैसों का इस्तेमाल वह केवल परेशानी में ही कर सकता है.

हितार्थ ने अपने रहने के लिए हैदराबाद को चुना. यहां उन्होंने कॉल सेंटर, बेकरी, जूतों की दुकान और मैकडोनाल्ड आदि में नौकरी की. यहां काम करके हितार्थ ने महीनेभर में करीब 5000 रुपए कमाए. लेकिन इससे उनके रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाई. हितार्थ बताते हैं मैंने अमेरिका में शिक्षा ग्रहण की और मेरे पास डायमंड ग्रेडिंग में सर्टिफिकेट भी है लेकिन हैदराबाद में मुझे इससे कोई मदद नहीं मिली.

हैदराबाद के सिकंदराबाद में मुझे 100 रुपए में एक कमरा मिल गया. मैं वहां 17 लोगों के साथ कमरा शेयर कर रहा था. मेरा अगला काम था नौकरी ढूंढना. तीन दिन भटकने के बाद मुझे मल्टीनेशल फूड ज्वाइंट में नौकरी मिल गई. मैंने वहां 5 दिन काम किया और फिर नौकरी छोड़ दी. इसके बाद उन्होंने सिकंदराबाद में पैकेजिंग यूनिट में काम किया और सड़क किनारे ढाबों पर खाना खाया.

इस तरह हितार्थ ने 4 सप्ताह में 4 नौकरियां कीं और महीने के अंत तक 5000 रुपए कमाए. दरअसल ढोलकिया परिवार में सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि बच्चों को चकाचौंध वाले जीवन से अलग संघर्ष और चुनौतियों का अहसास कराने बाहर भेजा जाता है.

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