आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री ने जीएसटी को एक ‘काम में प्रगति’ के रूप में वर्णित किया और कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘धीरे-धीरे समायोजित’ हो रही है.
पिछले साल घोषित की गई नोटबंदी से मची अफरातफरी एक अस्थायी घटना थी और उच्च मूल्य के नोट को प्रचलन से बाहर करने से ‘स्थायी और पर्याप्त लाभ’ मिलेगा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने यह बात कही है. एक साक्षात्कार में आईएमएफ के आर्थिक सलाहकार और निदेशक रिसर्च मौरिस ऑब्स्टफेल्ड ने कहा कि हालांकि नोटबंदी, साथ ही वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन के कारण अल्पकालिक अवरोध उत्पन्न हुए हैं, लेकिन दोनों ही उपायों से दीर्घकालिक लाभ होगा.
ऑब्स्टफेल्ड ने कहा, “नोटबंदी की लागत काफी हद तक अस्थायी है और हमारा मानना है कि इस कदम से स्थायी और पर्याप्त लाभ होगा.” उन्होंने कहा, “नोटबंदी और जीएसटी दोनों के दीर्घकालिक लाभ होंगे, हालांकि इनसे अल्पकालिक परेशानियां पैदा हुई हैं.” आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री ने जीएसटी को एक ‘काम में प्रगति’ के रूप में वर्णित किया और कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था ‘धीरे-धीरे समायोजित’ हो रही है.
ऑब्स्टफेल्ड ने भारत सरकार द्वारा किए गए कुछ अन्य सुधारों को रेखांकित किया, जिसने बहुपक्षीय एजेंसियों को प्रभावित किया है. उन्होंने कहा, “सरकार ने पहला महत्वपूर्ण कदम, जैसे दिवाला और दिवालियापन संहिता को लागू किया है, जिससे भारत तो विश्व बैंक के ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में अपनी स्थिति और सुधारने में मदद मिलेगी.”
भारत का वित्तीय क्षेत्र कर रहा विचारणीय चुनौतियों का सामना: IMF
भारत का वित्तीय क्षेत्र इस समय कई चिंताजनक चुनौतियों का सामना कर रहा है. इसमें उच्च स्तर की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए), कारपोरेट बैंलेंस शीट में सुधार की धीमी प्रक्रिया देश की बैंकिंग प्रणाली के लचीलेपन का परीक्षण कर रही हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के मुताबिक देश की प्रगति में बाधा बन रहे हैं. मुद्रा कोष के कार्यकारी बोर्ड का ‘भारत की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के आकलन’ (एफएसएसए) पर विचार-विमर्श करने के बाद उसने एक रपट में कहा कि भारत के प्रमुख बैंक लचीले दिखते हैं, लेकिन इस प्रणाली में कई विचारयोग्य कमजोरियां हैं.
मुद्रा कोष ने बीते 21 दिसंबर को कहा कि वित्तीय क्षेत्र के सामने कई चुनौतियां हैं और आर्थिक वृद्धि हाल में धीमी हुई है. एनपीए का उच्च स्तर, कारपोरेटों की बैलेंस शीट में धीमा सुधार बैंकों के लचीलेपन का परीक्षण कर रही हैं और देश में निवेश और वृद्धि की बाधक हैं. इससे पहले भारत के लिए आखिरी बार एफएसएसए को वर्ष 2011 में किया गया था.