पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्यों के बीच सहमति बनना मुश्किल: एसोचैम

पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने पर राज्यों के बीच सहमति बनना मुश्किल: एसोचैम

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एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने यहां कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना हमेशा से ही अपेक्षित रहा है ताकि ईंधन मूल्य शृंखला की दक्षता बढ़े और ग्राहकों पर कर बोझ कम हो.

उद्योग मंडल एसोचैम का कहना है कि पेट्रोलियम उत्पादों को माल व सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने को लेकर राज्यों के साथ सहमति बनना काफी मुश्किल है क्योंकि केंद्र व राज्य, दोनों ही राजस्व के मामले में इस क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल में राज्यसभा में कहा था कि केंद्र ने पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का समर्थन किया है, लेकिन उन्होंने कहा कि यह काम राज्यों के साथ सहमति बनने पर ही हो सकता है.

एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने यहां कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाना हमेशा से ही अपेक्षित रहा है ताकि ईंधन मूल्य शृंखला की दक्षता बढ़े और ग्राहकों पर कर बोझ कम हो. रावत ने कहा, वास्तविक बात की जाए तो केंद्र व राज्य दोनों ही अपने राजस्व संग्रहण के लिए पेट्रोलियम क्षेत्र पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं. कुल मिलाकर वे पेट्रोल व डीजल पर 100- 130 प्रतिशत से अधिक कर लगाते हैं.

केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाने का समर्थन किया है, लेकिन राज्यों के समर्थन के बाद ही इसे जीएसटी के तहत लाया जाएगा. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बीते 19 दिसंबर को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा, “जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है, हम पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के तहत लाने के पक्ष में हैं. लेकिन हम राज्यों की सहमति का इंतजार कर रहे हैं. और मुझे उम्मीद है कि देर-सवेर राज्यों की सहमति भी इस पर मिल जाएगी.”

उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम पदार्थों को बाहर नहीं रखा गया है और यह जीएसटी कानून का हिस्सा है. लेकिन इस पर जीएसटी लगाने का फैसला तभी लिया जाएगा, जब जीएसटी परिषद में इसे 75 फीसदी या तीन-चौथाई बहुमत से मंजूर किया जाता है. उन्होंने कहा कि 115वें संविधान संशोधन में पहले से ही इसके लिए प्रावधान किया गया है, जिससे किसी भी कानून में कोई और संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी.

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