'बैंकों के बड़े कर्जदारों को बचाना चाहती है सरकार, नहीं उठा रही सख्त कदम'

‘बैंकों के बड़े कर्जदारों को बचाना चाहती है सरकार, नहीं उठा रही सख्त कदम’

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एआईबीईए ने दावा किया कि विजय माल्या सरीखे कॉर्पोरेट दिग्गजों के कर्ज नहीं चुकाने के कारण देश में बैंकों की कुल गैर- निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गयी हैं.

बैंकों के बड़े कर्जदारों पर कार्रवाई के संबंध में सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) ने सोमवार (27 नवंबर) को मांग की कि जान-बूझकर बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाले लोगों के विरुद्ध फौजदारी कार्रवाई शुरू की जानी चाहिये. एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटाचलम ने एक कार्यक्रम के दौरान यहां संवाददाताओं से कहा, “सरकार बड़े बैंक कर्जदारों को बचाना चाहती है. वह उनके खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाना चाहती.” वेंकटाचलम ने कहा, “सरकार को सभी बैंक कर्जदारों के नामों को सार्वजनिक करना चाहिये. जान-बूझकर कर्ज न चुकाने वाले लोगों के खिलाफ फौजदारी कार्रवाई शुरू की जानी चाहिये.”

उन्होंने दावा किया कि विजय माल्या सरीखे कॉर्पोरेट दिग्गजों के कर्ज नहीं चुकाने के कारण देश में बैंकों की कुल गैर- निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गयी हैं. एआईबीईए महासचिव ने सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अगले दो साल के भीतर 2.11 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डालने की योजना पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, “इन बैंकों को सरकार से मूल धन के रूप में पांच लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. मूल धन की कमी के चलते इन बैंकों को कर्ज बांटने और अपना कारोबार बढ़ाने में खासी मुश्किल हो रही है.”

वेंकटाचलम ने देश के सरकारी बैंकों के विलय और निजीकरण के विचार को “बेहद घातक” बताते हुए कहा कि इन बैंकों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है और उसे इनका विस्तार करना चाहिये. उन्होंने कहा कि बैंकिंग सुधारों के नाम पर सरकार के उठाये जा रहे कथित गलत कदमों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने के लिये एआईबीईए अगले महीने से देशव्यापी अभियान चलायेगा.

वेंकटाचलम ने आईडीबीआई बैंक में वेतन वृद्धि की मांग के समर्थन में 27 दिसंबर को बुलायी गयी राष्ट्रव्यापी हड़ताल को एआईबीईए के समर्थन की घोषणा भी की. आईडीबीआई बैंककर्मियों की वेतन वृद्धि एक नवंबर 2012 से लंबित है. उन्होंने आरोप लगाया कि माल और सेवा कर (जीएसटी) का बैंकिंग उद्योग पर विपरीत असर पड़ रहा है और खासकर छोटे कारोबारी नयी कर प्रणाली के दायरे में आने के “डर” से बैंकिंग लेन-देन से बच रहे हैं.

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