रियल्टी एस्टेट के लिए 'काल' बनी नोटबंदी, 2018 से बंधी उम्मीदें

रियल्टी एस्टेट के लिए ‘काल’ बनी नोटबंदी, 2018 से बंधी उम्मीदें

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नोटबंदी और रेरा लागू करने तथा जीएसटी लागू होने के बाद सभी हितधारकों ने ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति अपना रखी है.

रियल एस्टेट सेक्टर में सरकार की तरफ से कई नीतिगत पहल के बावजूद पूरे साल मंदी छाई रही, हालांकि किफायती आवास श्रेणी में अच्छी तेजी रही. संपत्ति सलाहकार और डेवलपर्स के अनुसार, नीतिगत सुधारों में आवासीय रियल एस्टेट के सौदे को पहले से कहीं अधिक पारदर्शी बनाने का वादा किया गया है और बाजार में आशा है कि 2018 में बिक्री में सुधार होगा और नई इकाइयां लांच होंगी तथा घर खरीदारों का आत्मविश्वास बढ़ेगा. पिछले साल के अंत में केंद्र की आश्चर्यजनक नोटबंदी की घोषणा रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए ‘असली झटका’ थी. इस बीच, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (आरईआरए) को वित्तीय अनुशासन में सुधार, बाजार में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और भ्रामक डेवलपर्स और दलालों से निपटने के लिए उपभोक्ताओं को स्पष्ट कानूनी विकल्प और भरोसा प्रदान करने के लिए लाया गया.

वहीं, कराधान पारदर्शिता में सुधार के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा बेनामी संपत्तियों के लेनदेन पर रोक लगाने के लिए बेनामी संपत्ति अधिनियम पारित किया गया. अनारक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी ने बताया, “व्यापक सुधार किए गए हैं, जिससे भारतीय रियल एस्टेट कारोबार में सचमुच बहुत बदलाव आया है. जो काले धन को दूर करने और बाजार पारदर्शिता में सुधार पर केंद्रित है, ताकि देश के आवासीय अचल संपत्ति कारोबार को उपभोक्ताओं और निवेशकों के लिए बेहतर बनाया जा सके.”

राष्ट्रीय रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल के उपाध्यक्ष प्रवीण जैन ने कहा कि नोटबंदी और रेरा लागू करने तथा जीएसटी लागू होने के बाद सभी हितधारकों ने ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति अपना रखी है. जैन ने कहा, “इससे क्षेत्र में कुछ हद तक मंदी आई है, क्योंकि हर कोई नोटबंदी, रेरा और जीएसटी के प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहा है. कोई भी तब तक नए सौदे करने के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि स्थायित्व न आ जाए.”

जेएलएल इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कंट्री हेड रमेश नायर ने कहा कि जीएसटी, निर्माणाधीन परियोजनाओं में घरों की खरीद पर लागू होता है, जिससे घर खरीदारों को या तो पूरी हुई परियोजनाएं खरीदने या अपने खरीद निर्णय को रोकने के लिए प्रेरित किया है. इसके अलावा, डेवलपर्स ने प्रमुख शहरों में रेरा के तहत अपंजीकृत परियोजनाओं की बिक्री रोक दी है. नायर ने कहा, “इन कारकों की वजह से 2017 की तीसरी तिमाही में शीर्ष सात में से पांच शहरों में तिमाही बिक्री सर्वकालिक रूप से कम 4.8 फीसदी पर आ गई है.”

साल 2017 की तीसरी तिमाही तक आवासीय परियोजनाओं की लांचिंग में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साथ ही, किफायती आवास की श्रेणी में पहली तीन तिमाहियों में 27 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है. इनमें से ज्यादातर ने नए सरकारी नियमों का फायदा उठाते हुए और उस श्रेणी में घरों को लांच किया है.

कुशमन एंड वेकफील्ड्स के वरिष्ठ निदेशक (शोध सेवाएं) सिद्धार्थ गोयल ने बताया, “डेवलपर्स और उपभोक्ता दोनों के लिए सस्ती हाउसिंग एक आकर्षक प्रस्ताव है, क्योंकि मांग बहुत बड़े पैमाने पर है, और पूर्ति काफी कम है. केंद्र सरकार द्वारा इस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिए जाने से डेवलपर्स के लिए कर्ज-वित्तपोषण का कई रास्ता खुला है, जिसमें ईसीबी, एफडीआई के साथ ही राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से उच्च प्रतिस्पर्धी दरों पर ऋण की उपलब्धता शामिल है.”

रेरा के कार्यान्वयन में हालांकि राज्यों द्वारा ढील बरती जा रही है. केंद्र सरकार की अनुसूची के अनुसार, साल 2017 के जुलाई अंत तक, सभी राज्यों को पूर्ण कार्यक्षमता के साथ रेरा लागू करना चाहिए था. नाईट फ्रैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सामंतक दास ने आईएएनएस से कहा, “कई राज्य अभी भी इस प्रक्रिया में हैं या उनके पास आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं हैं. कुछ राज्यों के रेरा नियमों ने खरीदारों को निराश किया है.”

आईसीआरए के एक अध्ययन के अनुसार, 2017 की तीसरी तिमाही तक अधिकांश प्रमुख राज्यों ने अपने रियल एस्टेट नियमों को अधिसूचित कर लिया था और रेरा अधिनियम के तहत आवश्यक रीयल एस्टेट विनियामक प्राधिकरणों की स्थापना कर ली थी. लेकिन रेरा के कार्यान्वयन के बाद भी नई परियोजना शुरू होने में मंदी देखी गई. जबकि डेवलपर अपनी चल रही परियोजनाओं की बिक्री जारी रख रहे हैं. उन परियोजनाओं में ग्राहकों के विश्वास में सुधार हुआ है, जिसे राज्य सरकार के तहत गठित रेरा द्वारा मंजूरी दी गई हो.

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