इस विधेयक में वेतन भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1949, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान मेहनताना अधिनियम 1976 को मिलाकर एक संहिता बना दिया गया है.
सरकार इस साल श्रम क्षेत्र में व्यापक सुधारों को आगे बढ़ाना चाहती है. इसकी शुरुआत बजट सत्र में हो सकती है. इस दौरान सरकार श्रम क्षेत्र में ‘वेतन संहिता विधेयक’ को पारित कराने का प्रयास करेगी. इससे सरकार को विभिन्न क्षेत्रों के लिए न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार मिल जायेगा. एक सूत्र ने कहा, ‘‘वेतन संहिता विधेयक पहली श्रम संहिता होगी जिसे पारित करने के लिए बजट सत्र में पेश किया जाएगा. श्रम मंत्रालय को उम्मीद है कि संसद की प्रवर समिति इस महीने के आखिर में शुरू हो रहे बजट सत्र में इस विधेयक को पेश कर देगी.’’ लोकसभा में इस विधेयक का ड्राफ्ट अगस्त 2017 में पेश किया गया था जिसके बाद इसे समीक्षा के लिए प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था.
इस विधेयक में वेतन भुगतान अधिनियम 1936, न्यूनतम वेतन अधिनियम 1949, बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान मेहनताना अधिनियम 1976 को मिलाकर एक संहिता बना दिया गया है. श्रम व रोजगार मंत्रालय 44 विभिन्न श्रम कानूनों को मिलाकर चार विस्तृत संहिताएं बनाने पर काम कर रहा है. सूत्र ने कहा, ‘‘अन्य तीन संहिताएं संबंधित पक्षों से परामर्श के विभिन्न स्तरों पर हैं. इन विधेयकों को भी इसी साल संसद में पेश किया जा सकता है.’’
वहीं दूसरी ओर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने रविवार (14 जनवरी) को कहा कि सरकार ने कृषि को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा है और सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि आर्थिक विकास का लाभ किसानों तक भी पहुंचे ताकि समानता लाई जाए. वित्तमंत्री अरुण जेटली रविवार (14 जनवरी) को नेशनल कमोडिटी व डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीएक्स) पर ग्वारसीड में ऑप्शंस ट्रेडिंग का नया डेरिवेटिव्स टूल लांच करने के अवसर पर बोल रहे थे.
एक फरवरी को बजट पेश होने के पूर्व वित्तमंत्री के इस बयान को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि चालू वित्त वर्ष में कृषि विकास दर में गिरावट दर्ज की गई है. कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कई प्रमुख कृषि उत्पादक प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और 2019 में लोकसभा चुनाव भी है. ये सारे ऐसे कारक हैं जो बजटीय आवंटन में कृषि क्षेत्र को प्रमुखता देने में प्रभावकारी बन सकते हैं.