'नोटबंदी वाले वित्त वर्ष में दक्षिणी क्षेत्र की पारिवारिक जमा दर में गिरावट'

‘नोटबंदी वाले वित्त वर्ष में दक्षिणी क्षेत्र की पारिवारिक जमा दर में गिरावट’

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आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, देश स्तर पर कुल पारिवारिक जमा 2015-16 में 12.3 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 के दौरान 14.1 प्रतिशत पर पहुंच गई.

नोटबंदी के बाद देशभर में पारिवारिक जमा दर में वृद्धि देखी गई, लेकिन दक्षिण क्षेत्र में स्थिति विपरीत रही. वित्त वर्ष 2016-17 में दक्षिण क्षेत्र में जमा दर में गिरावट देखी गई. रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, देश स्तर पर कुल पारिवारिक जमा 2015-16 में 12.3 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 के दौरान 14.1 प्रतिशत पर पहुंच गई. जबकि दक्षिणी क्षेत्र की जमा दर इसी अवधि में 13.8 प्रतिशत से गिरकर 13.3 प्रतिशत रह गई. घरेलू ब्रोकरेज फर्म कोटक सिक्योरटीज ने कहा, “मध्य, उत्तरी और पश्चिमी भारत में जमा दर में तेजी देखी गई जबकि दक्षिणी भारत में गिरावट का रुख रहा.” कर्नाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना राज्य का जमा दर की गिरावट में प्रमुख योगदान रहा.

इसमें कहा गया है कि 500 और 1000 रुपये को बंद किए जाने के कारण लोगों ने बड़ी मात्रा बैंकों में पैसा जमा किया. इसके परिणामस्वरूप जमा में वृद्धि हुई और बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी आने से ऋण की वृद्धि दर में तेजी रही. कोटक ने रपट में कहा कि नोटबंदी ने समग्र जमा दर पर “पदचिह्न” छोड़ा. इस बीच, बैंकों की मजबूत स्थिति के साथ देश के पूर्वी और मध्य हिस्सों में पिछले कुछ वर्षों की तुलना में जमा में तेजी देखी गई.

वहीं दूसरी ओर पुणे की शोध संस्था अर्थक्रांति के संस्थापक एवं प्रमुख अर्थशास्त्री अनिल बोकिल ने कहा कि व्यावसायिक लेन देन में पारदर्शिता होनी चाहिए जो बैंकिग सेवा के जरिये ही संभव है. वह जयपुर में बीते 24 दिसंबर को अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत द्वारा आयोजित वर्तमान अर्थनीति एवं ग्राहक विषय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. बोकिल ने कहा कि नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार, कालेधन और आतंकवाद की रोकथाम के लिये नोटबंदी आवश्यक थी. अधिक मूल्य वाले नोटों का चलन बंद होने से जाली नोट बंद हो जायेंगे.

उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था के सुधार के लिये माल व सेवा कर जीएसटी एक पायदान है. समझा जाता है कि अर्थक्रांति ने कालेधन के खिलाफ कार्रवाई के रूप में नोटबंदी की वकालत की थी. प्रधानमंत्री ने पिछले साल आठ नवंबर को हजार और पांच सौ रुपये के नोटों को चलन से निकालने का फैसला किया था, जो उस समय चलन में कुल करेंसी का करीब 86 प्रतिशत था.

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